सिख समुदाय के लोग दिसंबर माह के सात दिन भुला नहीं पाते। 21 से 27 दिसंबर तक वे कोई शुभ काम नहीं करते।
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सिख समुदाय के लोग दिसंबर माह के सात दिन भुला नहीं पाते। 21 से 27 दिसंबर तक वे कोई शुभ काम नहीं करते।
सिख धर्म के इतिहास में 21 से 27 दिसंबर, 1704 को सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी के परिवार ने धर्म रक्षा के लिए बलिदान दिया था
इस दौरान, गुरु गोविंद सिंह जी के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह चमकौर में मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे.
वहीं, उनके दो छोटे बेटों जोरावर सिंह और फ़तेह सिंह को औरंगज़ेब ने धर्म परिवर्तन न करने पर ज़िंदा दीवार में चुनवा दिया था.
गुरु गोविंद सिंह जी की पत्नी और माता गूजरी जी भी इस दौरान शहीद हो गई थीं.
इस घटना को भारत के इतिहास में ‘शोक और शौर्य’ का सप्ताह कहा जाता है.
सिख धर्म और हिंदू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले इन चार साहिबजादों की याद में 26 दिसंबर को ‘वीर बाल दिवस’ मनाया जाता
इंडिया दर्पण न्यूज़ संपादक राम प्रकाश वत्स
भरमाड,20/12/2024:सिख समुदाय के लोग दिसंबर माह के सात दिन भुला नहीं पाते। 21 से 27 दिसंबर तक वे कोई शुभ काम नहीं करते। ये वो दिन थे, जिनमें सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह का परिवार शहीद हुआ था। गुरुजी ने इन दिनों में ही चार बेटे और पत्नी को खोया था।
21 दिसंबर 1704 को सिरसा नदी के किनारे चमकौर नामक जगह पर सिखों और मुगलों के बीच एक ऐतिहासिक युद्ध लड़ा गया, जो चमकौर के युद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुआ। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह के नेतृत्व में 40 सिखों का सामना वजीर खान के नेतृत्व वाले 10 लाख मुगल सैनिकों से हुआ था। वजीर खान किसी भी सूरत में गुरु गोविंद सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ना चाहता था। क्योंकि, औरंगजेब की लाख कोशिशों के बावजूद गुरु गोविंद सिंह मुगलों की अधीनता स्वीकार नहीं कर रहे थे। गुरु गोविंद सिंह के दो बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह सहित 40 सिखों ने अपनी जान पर खेलकर वजीर खान के मंसूबों को कामयाब नहीं होने दिया। 10 लाख मुगल सैनिक भी गुरु गोविंद सिंह को नहीं पकड़ पाए। यह युद्ध इतिहास में सिखों की वीरता और उनकी अपने धर्म के प्रति आस्था के लिए जाना जाता है ।
(जानें क्या हुआ इन सात दिनों में)
युद्ध में गुरु गोविंद सिंह का परिवार पूरी तरह बिखर गया था। देश व धर्म की खातिर उनके परिवार ने प्राण त्यागे। इसलिए ये सात दिन हमारे के लिए शोक होते हैं, जिनमें कोई शुभ काम नहीं किए जाते।
(21 दिसंबर): श्री गुरु गोविंद सिंह ने परिवार सहित श्री आनंद पुर साहिब का किला छोड़ा।
(22 दिसंबर): गुरु साहिब अपने दोनों बड़े पुत्रों सहित चमकौर के मैदान में पहुंचे। गुरु साहिब की माता और छोटे दोनों बेटों को गंगू नामक ब्राह्मण, जो कभी गुरु घर का रसोइया था, अपने साथ अपने घर ले गया। चमकौर की जंग में दुश्मनों से जूझते हुए गुरु साहिब के बड़े पुत्र अजीत सिंह उम्र महज 17 वर्ष और छोटे बेटा जुझार सिंह उम्र महज 14 वर्ष अपने 11 अन्य साथियों सहित मजहब और मुल्क की रक्षा के लिए वीरगति को प्राप्त हो गए।
(23 दिसंबर): गुरु साहिब की माता गुजर कौर और दोनों छोटे बेटे जोरावर सिंह (8 वर्ष) और फतेह सिंह (6 वर्ष) के गहने एवं अन्य सामान गंगू ने चुरा लिया और तीनों को मुखबरी कर मोरिंडा के चौधरी गनी खान और मनी खान के हाथों गिरफ्तार करवा दिया। गुरु साहिब को अन्य साथियों की बात मानते हुए चमकौर छोड़ना पड़ा।
(24 दिसंबर) : माता गुजर कौर व दोनों भाइयों को सरहिंद पहुंचाया गया और वहा ठंडे बुर्ज में नजरबंद किया गया।
(25 और 26 दिसंबर) : छोटे पुत्र को नवाब वजीर खान की अदालत में पेश किया गया और उन्हें धर्म परिवर्तन करने के लिए लालच दिया गया।
(27 दिसंबर ): धर्म परिवर्तन न स्वीकारने पर जोरावर सिंह और फतेह सिंह जिंदा दीवार में चिनवा दिया गया। बाद में गला रेत कर शहीद कर दिया गया। यह खबर सुन माता गुजर कौर ने भी प्राण त्याग दिए।
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