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जल है तो जीवन है वायु है तो जीवन की गतिशीलता है,इन दोनों का संबंध इस सृष्टि के हर जीव- निर्जीव से है, इनका असंतुलन सृष्टि के लिए विनाशक होता है ।

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जल का गम्भीर संकट आ सकता है , भूमि का  जल स्तर एक मीटर प्रति वर्ष की दर से घट रहा है,जल शुद्ध न रहने से जानलेवा बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं।

स्वतन्त्र लेखक राम प्रकाश हिमाचल प्रदेश        

पहले हम सुना करते थे कि विदेशों में पानी वोतलो में बेचा जाता है । बड़ा अचरज होता था । क्योंकि भारत में पानी पिलाना भी पुण्य का कार्य था । पानी बेचना पाप समझा जाता था । अब धीरे धीरे सबकुछ बदल रहा है। पानी की पूर्ति कम और मांग ज्यादा है । क्योंकि पानी के महत्व को शासन, प्रशासन व जनता हल्के में ले रही है ।

जल है तो जीवन है वायु है तो जीवन की गतिशीलता है । इन दोनों का संबंध इस सृष्टि के हर जीव- निर्जीव से है । इनका असंतुलन सृष्टि के लिए विनाशक होता है । गत 200 बरसों से प्राकृतिक संतुलन को विज्ञान व मानवता के द्वारा असंतुलित किया जा रहा है । जिसका चिंताजनक परिणाम अपनी दस्तक दे चुका है । वर्तमान में वायु तो प्रदूषित है ही है अपितु जल प्रदूषित होने की रफ़्तार भी तेज है वहीं जल स्तर के घटने से सिंचाई व पेयजल संकट भी दिन प्रतिदिन गहरा रहा है। यह मंथन वह चिंता का विषय है ।जिसपर विचार हरेक को करके अपना योगदान देना चाहिएहम अपनी जीवन शैली और थोड़ी आवश्यकताओं को संतुलित करके जल का संरक्षण कर सकते हैं।

गाँव का गरीब आदमी बड़ी किफायत से पानी का उपयोग करता है वहीं शहरों और महानगरों में लोग अपने ग्राउंड में लगी विदेशी घांस को सींचने और लग्जरी गाड़ियों को धुलने में सैकड़ों लीटर पानी बर्बाद कर देते हैं। वाशिंग मशीनों में हज़ारों लीटर पानी रोज बर्बाद हो जाता है। यदि छोटे-छोटे रोजमर्रा के कामों में हम थोड़ी सी सावधानी बरत लें तो जल संरक्षण हो सकता है। हमे यह नही भूलना चाहिए की यदि जल नही होगा तो हमारा कल भी नही होगा।केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के अध्ययन में कहा गया है कि देश के ज्दायादतर इलाकों में जलस्तर एक मीटर प्रति वर्ष की दर से घट रहा है।है।

जल सभी जीवों के जीवन का मुख्य आधार है। बहते जल के स्रोतों का उपयोग सभी या सभी स्थान के लोग नही कर सकते ऐसे में भू-जल की महत्ता और भी बढ़ जाती है। मौसम और भू-जल का सम्बन्ध लगभग प्रतिकूल होता है क्योंकि गर्मी के दिनों में वातावरण गर्म होने के बावजूद भी जमीन के अंदर कंपनी ठण्डा और ठण्ड के मौसम में गर्म होता है। भू-जल सस्ता व सुविधाजनक भी है। सतही पानी की तरह इसके प्रदूषित होने का डर भी नही होता है। भू-जल, प्राकृतिक बरसात व नदियों के जल का जमीन के नीचे रिसाव होने से एकत्र होता है।

इस सृष्टि में जल के अस्तित्व क्या है । आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी का 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है. 1.6 प्रतिशत पानी ज़मीन के नीचे है और 0.001 प्रतिशत वाष्प और बादलों के रूप में है. पृथ्वी की सतह पर जो पानी है उसमें से 97 प्रतिशत सागरों और महासागरों में है जो नमकीन है और पीने के काम नहीं आ सकता. केवल तीन प्रतिशत पानी पीने योग्य है जिसमें से 2.4 प्रतिशत ग्लेशियरों और उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव में जमा हुआ है और केवल 0.6 प्रतिशत पानी नदियों, झीलों और तालाबों में है जिसे इस्तेमाल किया जा सकता है. एक अनुमान के अनुसार पृथ्वी पर कुल 32 करोड़ 60 लाख खरब गैलन पानी है. और एक रोचक बात ये भी है कि ये मात्रा घटती बढ़ती नहीं है. सागरों का पानी वाष्प बनकर उड़ता है, बादल बनकर बरसता है और फिर सागरों में जा समाता है. और ये चक्र चलता रहता है.

एक शोध के अनुसार पृथ्वी पर जल असीमित जरूर है, लेकिन कुल जल का मात्र 2.4 प्रत शत हिस्सा ही स्वच्छ है। इस कारण जल का महत्व और संरक्षण बहुत अधिक बढ़ जाता है। कुंओं और तालाबों का सूखना और गाद जमा होने जैसी समस्या से खासकर गांव बहुत प्रभावित हो रहे हैं।वनों की अंधाधुंध कटाई के कारण पर्यावरण गड़बड़ा चुका है। वर्षा अनियमित हो गयी है. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि वर्षा के जल के संचय किया जाये। सरकार को इसके लिए एक अभियान के तहत कार्य करना चाहिए और लोगों में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ जल संचय के लिए आम जनता को बढ़ावा देना चाहिए

आंकड़ों के अनुसार पानी के स्त्रोतों का आंकलन किया जाय देश के जल संसाधनों को नदियों और नहरों, जलाशयों, कुंडों और तलाबों, आर्द्र भूमि और झीलों तथा शुष्क पड़ते जलस्रोतों और खारे पानी के रुप में वर्गीकृत किया जा सकता है। नदियों और नहरों के अलावा बाकी के जल स्रोतों का कुल क्षेत्र 7 मिलियन हेक्टेयर है। नदियों और नहरों की कुल 31.2 हजार किलोमीटर लंबाई के साथ इस संबंध में उत्तर प्रदेश का पहला स्थान है जो देश की नदियों और नहरों की कुल लंबाई का 17 प्रतिशत है। उत्तर प्रदेश के बाद जम्मू-कश्मीर और मध्य प्रदेश का स्थान आता है। देश में पाए जाने वाले शेष जल स्रोतों में कुंडों और तालाबों का जल क्षेत्र सर्वाधिक है (2.9 मिलियन हेक्टेयर) इसके बाद जलाशयों (2.1 मिलियन हेक्टेयर) का स्थान है।

आखिर तेजी से गंभीर होती इस समस्या पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है। केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के एक अधिकारी कहते हैं ।सरकार को पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 को कड़ाई से लागू करना होगा। इसके तहत भूमिगत जल के अनियंत्रित दोहन पर अंकुश लगाने का प्रावधान है । सीएसई के जैकब कहते हैं ।भूमिगत जल के घटते स्तर को रोकने के लिए वर्षा के पानी के संरक्षण के ठोस उपाय करने होंगे । लेकिन असली सवाल यह है कि क्या तमाम राजनीतिक विवादों से जूझती सरकार इस अहम समस्या के समाधान के मामले में दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय देगी । ऐसा नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब देश की आधी से ज्यादा आबादी बूंद-बूंद के लिए तरसती नजर आएगी ।बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिकीकरण के कारण आज ऐसी स्थिति बन चुकी है कि 2040 तक जल का गम्भीर संकट होने की संभावनाएं जतायी जा रही है। दिन प्रतिदिन जल के स्रोत भी घटते जा रहे हैं. पेयजल शुद्ध न रहने से जानलेवा बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। दूषित पानी से देश की जनता की रोग प्रतिरोधक क्षमता का ह्रास हो रहा है । प्राकृतिक जल स्त्रोतो का जल की शरीर को पुष्ट करने वाले तत्वों से युक्त वह शुद्ध होता है ।

तालाबों का लगभग अस्तित्व समाप्त होने के कंगार पर है । कुंहो का उपयोग चलन से बाहर हो गया है प्राकृतिक स्त्रोत सूख रहे है । लगातार बहने वाले नदी नाले सूख रहे हैं । गांवों में कुहों को बनाने की चाहत खत्म हो चुकी है । भारत में अकूत जल भंडारण होने के बावजूद उचित उपयोग ना होने के कारण पेयजल व सिंचाई संकट घटने के सिवाय दानव का रुप धारण कर रहा है । मानवता को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी । अतः आने वाले समय में पानी कि कीमते ही राजनीतिक दलों का भविष्य तय करेगी । समय रहते चेतना आनी अवश्य है

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