हर महिला को यह लेख पढना चाहिए यह महिलाओं को समर्पित है —————IDN संपादक राम प्रकाश
😊 कृपया इस न्यूज को शेयर करें😊
|
हर महिला को यह लेख पढना चाहिए यह महिलाओं को समर्पित है⇐IDN संपादक राम प्रकाश
सनातन धर्म में नारी की आराधना शाक्ति स्वरूप में की जाती है। शाक्ति के बिना यह संसार र्निजिव है। सभी देवताओं ने शाक्ति की आराधना करके असीमित शाक्तिशाली वरदानो को प्राप्त किया।
IDN संपादक राम प्रकाश सनातन धर्म में नारी को लक्ष्मी कहा गया है।क्योंकि विवाह बंधन के समय में लग्न वेदी के अंत में दुलह दुल्हन को लक्ष्मी व विष्णु के रूप में बर बधू पक्षों के द्वारा आरती व बंदना की जाती है। इसका कारण यह होता है कि दोनों सृष्टि रचना के साथ-साथ संसारिक नियमों का पालन भी करते हैं ।
जो नारी ** ॐ पति परमेश्वराय नम:**इस आमोध मंत्र के जाप के प्रभाव से सृष्टि के कण-कण में अपने पति के स्वरूप में देखती है। पत्नि का यही प्रभाव उसे देवी देवताओं से भी उंच्चा स्थान दिलवाता है। इसे पतिब्रत धर्म कहते हैं। पति विष्णु भगवान् के तुल्य होता है जिसमें सहनशीलता,मधुरवाणी,शिष्टाचार व संसारिक नियमों के पालन के साथ-साथ अपने द्धारा रचित सृष्टि का पालन करता है। उसका पति सदैव दीर्घ आयु को निरोगता से प्राप्त होता है
वर्तमान में गृहस्थी जीवन का अर्थ बदल गया है।जिसके पीछे प्रमुख कारण संस्कारों की कमी है।वर्तमान में मैथुन सृष्टि का भाव ही बदल गया है। जिस कारण बहुत ही कम परिवार गृहस्थी जीवन का आनन्द ले पाते हैं।
( महिला पहले बेटी,बहन,पत्नि,माँ,दादी,नानी, भरजाई बुआ,मौसी,चाची,ताई सुन्दर नामो से सुशोभित है धीरे धीरे यह रिस्ते किताबो तक सीमित हो रहे हैं )
(दुखद पहलू यह है कि-ना तो नारी रक्त संबंध में सुरक्षित है ना तो परिवार जनो में और ना तो रिस्तेदारो व ना तो गाँव वासियों के मध्य सुरक्षित है। नारी के प्रति घटिया मानसिकता इस वर्तमान समय में सबसे दुखद पहलू है।)
हमारी संस्कृति नारी के अंदर की संस्कृति है। पुरुषों के बराबर उसे आदर-सम्मान दिया जाता है, परंतु मध्यकाल में परिस्थितियों के कारण नारी के प्रति आदरभाव को लोग भूल गए और उस पर अत्याचार करने लगे। ये अत्याचार आज भी हमें दिखाई देते हैं। नारी के प्रति सम्मान रखने के लिए हमें अपने घर-परिवार से शुरुआत करनी पड़ेगी। सनातन धर्म में नवरात्रि पर्व मातृशक्ति की आराधना के लिए वर्ष में 9+9+9+9( दो वार नवरात्रे व दो बार गुप्त नवरात्रे दिन विशेष निश्चित गए हैं। यह नारी शक्ति के आदर और सम्मान का उत्सव है। यह उत्सव नारी को अपने स्वाभिमान व अपनी शक्ति का स्मरण दिलाता है, साथ ही समाज के अन्य पुरोधाओं को भी नारी शक्ति का सम्मान करने के लिए प्रेरित करता है
वर्तमान समय में नारी जितनी अधिक आगे बढ़ रही स्थान-स्थान पर उसे गुलाम बनाकर रखने का आकर्षण भी बढ़ रहा है। उसे बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ रहा है। नारी के प्रति संवेदनाओं में विस्तार होना चाहिए। जिस तरह हम नवरात्रि में मातृशक्ति के अनेक स्वरूपों का पूजन करते हैं, उनका स्मरण करते हैं, उसी प्रकार नारी के गुणों का हम सम्मान करें। हमारे घर में रहने वाली माता, पत्नी, बेटी, बहन- इन सब में हम गुण ढूंढें। एक नारी में जितनी इच्छाशक्ति दृढ़ता के साथ होती है, वह पुरुष में शायद ही होती है। आज नारी जाति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण ही घर और बाहर, ऑफिस हो या सामाजिक कार्यक्षेत्र में स्वयं को स्थापित कर रही है। दोहरी भूमिका लिए वह दोनों ही स्थितियों का बेहतर निर्वाह करती है।
कन्या का विवाह के नाम से वह जानी जाती है। पति के कार्यों को व पति के परिवार का ध्यान, पति के परिवार में यथोचित सम्मान देना, अपनी भावनाओं को एक तरफ रखकर त्याग, समर्पण से कार्य करना उसका उद्देश्य होता है। स्त्री का जीवन परिवार के लिए एक तपस्या, एक तप है, जो निष्काम भाव से किया जाता है।प्रत्येक घर में संघर्षों व अग्नि में तपने वाले को शीतलता प्रदान करने वाली नारी होती है। वह अपने ज्ञान, संघर्ष और कर्म से परिवार के सदस्यों को कार्यों के लिए प्रेरित करती रहती है।
विवाह का अवसर हो या घर में कोई कष्ट में हो- स्त्री जितनी भावुकता से उस समय को पहचानती है, उतना पुरुष नहीं समझ पाता।नारी का सबसे बड़ा जो गुण उसे भगवान ने प्रदान किया है वह है मातृत्व। एक मां अपने बच्चे के लालन-पालन और उसके अस्तित्व निर्माण में अपने पूरे जीवन की आहुति देती है। मातृत्व से ही वह अपनी संतानों में संस्कारों का बीजारोपण करती है। यह मातृत्व भाव ही व्यक्ति के अंदर पहुंचाकर दया, करुणा, प्रेम आदि गुणों को जन्म देती है।नारी के आभामंडल से घर पवित्र होता है।
नारी की ऊर्जा से ही संपूर्ण परिवार ऊर्जावान होता है। भाई, बहन के प्यार में ऊर्जा, पति-पत्नी के प्रेम में ऊर्जा तथा एक पुत्र अपनी मां के व्यवहार में ऊर्जा प्राप्त कर जीवन जीने का संकल्प करता है। घर की चहारदीवारी में प्रकाश की तरंगें उसके कारण व्याप्त होती हैं। जिस घर में नारी नहीं होती वह घर निस्तेज प्रतीत होता है। घर की प्रत्येक वस्तु को यथावत रखने का कार्य नारी ही करती है। चाहे वह भोजन सामग्री से संबंधित हो, चाहे वह घर-आंगन में सजी रंगोली से लेकर घर की दीवारों की कलात्मक वस्तुओं का रखरखाव। साथ ही घर-आंगन से लेकर स्वच्छता, पवित्रता तथा वाणी में मधुरता सब नारी के गुण हैं जिससे संपूर्ण घर का वातावरण मधुर बनता है, खासकर बेटियों से लेकर घर की मर्यादा, मधुरता, प्रेम और बढ़ता है। घर में बेटियां जितना अधिक माता-पिता के मनोभावों को समझती हैं, जितना अधिक वे पिता के कार्यों में सहयोग करती हैं, उतना पुत्र नहीं करता। बेटियां विवाह के बाद अपने पति के यहां जाती हैं तब भी उन्हें अधिक चिंता अपने माता-पिता की लगी रहती है। पुत्री के रूप में स्नेह-प्रेम प्रदान करके। माता-पिता के हृदय में वे करुणा भाव को ही जागृत करती हैं। भारतीय नारी पुरातन काल में ऋषियां हुआ करती थीं।
अनगिनत संसार में नारियां हैं जिनके ज्ञान- तपस्या से तीनों लोक प्रभावित होते थे। उसके कलयुग में भी नारी शक्तियों ने संस्कृति की रक्षा के लिए अपनी वीरता दिखाई। अनेक वीरांगनाएं इस देश की माटी पर जन्मी हैं। उनकी प्रेरणा और संकल्पों से परिवार और समाज को समय-समय पर ऊर्जा प्राप्त हुई है। आध्यात्मिक, सामाजिक, राजनीतिक सभी स्तरों पर नारी शक्ति द्वारा आज भी शंखनाद किया जा रहा है। बड़े-बड़े पदों पर नारियां अपनी विद्वता से देश को दिशा दे रही हैं। शक्ति ही हमें मुक्ति, भक्ति दोनों प्रदान करती है।आओ हम नारियों के सम्मान का संकल्प लें।
Whatsapp बटन दबा कर इस न्यूज को शेयर जरूर करें |
Advertising Space