देश के प्रति निस्वार्थ भाव की नैतिकता के बाजूद का अस्तित्व मिटाते राजनीतिक दल व नेता — ऐसा क्यों…?
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हाइलाइट न्यूज़
राज+नैतिक यह दो शब्द राजनीति का मूल आधार है आज यह यह दोनों शब्द अपना बाजूद खो चुके है
देश के शीर्ष नेताओं का एक शब्द देश की हवा बदल देता है उस देश की आबरू दांव पर लग जाती है। लेकिन नेता को कोई फर्क नहीं पडता।
देश के नेताओं के द्वारा दिऐ गय ब्यानों से सुखियां वटोरी जा सकती है व राजनीति क लाभ भी लिया जा सकता है लेकिन देश के लिए विनाशकारी होता हैं।
अगर भारत के देशवासियों की दृष्टि से देखा जाये तो इस प्रकार के अर्थहीन ब्यानो से देश की एकता के इस अतिसंवेदनशील पुष्प गुलदस्ते को उस स्तर पर नुकसान होता है जिसकी भरपाई नहीं होती है।
राजनीति जीवन में आप अपने पार्टी के नेता को स्पष्ट शब्दों में गालत नहीं ठहरा सकते। अपने नेता को तभी गालत ठहरा सकते हैं या राजनीतिक जीवन त्याग दें या फिर पार्टी छोड दे और विपक्ष में बैठकर आलोचना करे।
India Darpan News Chief Editor Ram Prakash Vats
देश के शीर्ष नेताओं का एक शब्द देश की हवा बदल देता है उस देश की आबरू दांव पर लग जाती है। जिसकी भरपाई करना नामुमकिन होता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दिया गया किसी भी नेता का ब्यान देश की दिशा और दशा निधारित करता है।इन ब्यानों का असर राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापिक पडता है।देश के नेताओं के द्वारा दिऐ गय ब्यानों से सुखियां वटोरी जा सकती है व राजनीति क लाभ भी लिया जा सकता है लेकिन देश के लिए विनाशकारी होते हैं।
अगर भारत के देशवासियों की दृष्टि से देखा जाये तो इस प्रकार के अर्थहीन ब्यानो से देश की एकता के इस अतिसंवेदनशील पुष्प गुलदस्ते को उस स्तर पर नुकसान होता है जिसकी भरपाई नहीं होती है।भारत सभी धर्मों का एक पुष्प गुलदस्ता है इस गुलदस्ते से किसी भी स्तर पर छेड़छाड़ करना देशहित में नहीं है। हर रोज देश के नेताओं के ब्यान इतने विवादास्पद होते हैं कि …….
ज्यादा स्थित उस समय संवेदनशील हो जाती है जब किसी भी पार्टी के नेता के व्यक्ति गत स्वार्थ के लिए दिऐ ब्यान को सही ठहराने के लिए जद्दोजहद करनी पडती है। राजनीति जीवन में आप अपने पार्टी के नेता को स्पष्ट शब्दों में गालत नहीं ठहरा सकते। अपने नेता को तभी गालत ठहरा सकते हैं या राजनीतिक जीवन त्याग दें या फिर पार्टी छोड दे और विपक्ष में बैठकर आलोचना करे।
राज+नैतिक यह दो शब्द राजनीति का मूल आधार है आज यह यह दोनों शब्द अपना बाजूद खो चुके है। राजनीति में सकारात्मक कार्य से नहीं विवादास्पद नाकारात्मक ब्यानों से अपना आधार बनाया जाता है जो की सुलभ और शाटकट रास्ता है। आज भी आजादी के बाद उन नेताओं की देश के प्रति समर्पित भावनाओं की इज्जत की जाती है जिन्होंने अपने राज+ नैतिक जीवन में अपने हितों का परित्याग करके देशहित के विरुद्ध कोई ब्यान नहीं दिया न ही भारत के लोगों के धन का दुरूपयोग किया देशभक्ति ओतप्रोत होकर अन्तिम श्वास तक देश के प्रति अपने नीजि स्वार्थ को अधिमान नहीं दिया।
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